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Devshayani Ekadashi: Significance, Rituals, and Celebrations

देव शयनी एकादशी या हरिशयनी एकादशी 29 जून गुरुवार को है। हिंदू तिथि अनुसार यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाते हैं इसलिए इस तिथि का नाम देव शयनी एकादशी पड़ा है। देवशयनी एकादशी का महत्व व्रत की विधि क्या है आइए इसके बारे में जानते हैं। इस दिन आराध्या भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और सुख संपदा से संपूर्ण जीवन हो जाता है।  साथ ही जाने अनजाने में किए गए पापों से भी मुक्ति मिल जाती है।

देवशयनी एकादशी पूजा मुहूर्त
देवशयनी एकादशी 29 जून 2023 दिन गुरुवार
एकादशी तिथि प्रारंभ 29 जून 3 बजकर 18 मिनट से
एकादशी तिथि समापन 30 जून सुबह 2 बजकर 42 मिनट तक
पारण का समय 30 जून दिन शुक्रवार सुबह 9 बजकर 20 मिनट तक

देवशयनी एकादशी व्रत विधि
देवशयनी एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान से निवृत होकर हाथ में अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और चारों तरफ गंगाजल से छिड़काव करें फिर षोडषोपचार विधि से भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु को पीला रंग बहुत प्रिय है इसलिए भगवान को पीले फूल पीले फल आदि अर्पित करें। इसके बाद धूप दीप जलाएं और कथा का वाचन करें। पूजन के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती उतारें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद पीपल और केले के वृक्ष की भी पूजा करें और सामर्थ्य के अनुसार दान पुण्य भी करें।

शयन मंत्र
सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्दे विबुध्येत प्रसन्नो मे भवाव्यय।।

मैत्राघपादे स्वपितीह विष्णु: श्रुतेश्च मध्ये परिवर्तमेति।
जागार्ति पौष्णस्य तथावसाने नो पारणं तत्र बुध: प्रकुर्यात्।।

देवशयनी एकादशी शयन पूजा विधि
देवशयनी एकादशी तिथि को सायंकाल के समय भी पूजा की जाती है। अपनी सामार्थ्य के अनुसार सोना चांदी तांबा या कागज की मूर्ति बनवाकर गायन वादन के साथ विधिपूर्वक पूजा करें। इसके बाद शयन मंत्र का जप करते हुए सजी हुई शय्यापर शयन करवाएं। इसके बाद रात्रि जागरण करना चाहिए। भगवान का सोना रात्रि के समय करवट बदलना संधिकाल में और जागना दिन में होता है।

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