**तुलसी विवाह ** देव उत्थापन एकादशी*
देव उत्थापन *एकादशी* को *तुलसी -विवाह* एक बहुत ही पारम्परिक एवं पवित्र रस्म है , जो शायद ही कोई सनातन घर हो , जो इसे श्रद्धा से न मनाता हो , कोई छोटे रुप में तो कहीं बड़ी धूमधाम से तुलसी मैया का विवाह *शालिग्राम* जी से करते हैं । आज के ही दिन से मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं , वैवाहिक महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य तथा कुँवारी कन्याएं ,सुयोग्य वर पाने के लिए बड़े मनोयोग से घर में तुलसी जी के विरवे को सजा -धजा पूरे विधि विधान से विवाह रचाती है।
कथा आती है कि वृंदा असुर कुल की होते हुए भी भगवान विष्णु की परम भक्त थी वृंदा का विवाह पराक्रमी असुर जालंधर से हुआ था । वह स्वर्ग की कन्याओं को परेशान करने लगा वृंदा के पातिव्रत्य धर्म के कारण उसका वध करना मुश्किल हो गया , तब भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा का पातिव्रत्य धर्म नष्ट किया , जलन्धर का पराक्रम छीन कर , वध किया , वृंदा के शाप के कारण भगवान विष्णु शालिग्राम बने , देवताओं ने वृंदा से विवाह करवाया । भगवान विष्णु ने वचन दिया कि तुम हमेशा मेरे शीश पर विराजमान रहोगी। तुलसी दल डालने पर ही मैं प्रसाद ग्रहण करूँगा।
अब यह कथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखे तो कपोल कल्पना नहीं है। हमारे शास्त्रों में इसे पूजा के साथ जोड़ दिया और मंदिर में रखवा दिया। इससे दो फायदे , एक सुबह की टहलने की कसरत मंदिर में जाकर तुलसी चरणामृत का पान। जो पूरी श्रद्धा से हम लेते हैं , विश्वास में ही भगवान का निवास है , जो नित्य सुबह खाली पेट चरणामृत लेता है , उसे उदर रोग नहीं सताता।
*अकाल मृत्यु हरणं* *सर्व व्याधि* *विनाशनम्* *विष्णु: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न भवति*
पूरे कार्तिक मास महिलाएं बड़ी श्रद्धा , भक्ति , नियम से तुलसी जी का पूजन व शाम को दीपक जलाती है। यूँ तो पूरे बारह महीनों तुलसी जी के आगे दीपक जलाने का विधान है , इसके पीछे भी वैज्ञानिक तत्व छिपा है। तुलसी को पहले लोग खुले ऑंगन में रखते थे और दीपक जलाते तो दीपक की मद्धम आँच से तुलसी में एक गर्माहट आती है , उसमें जो *मर्करी* होती है एक रासायनिक क्रिया द्वारा हवा में मिलकर *ओज़ोन परत* को हीलिंग करती है। आज लोग छोटे फ्लैट में रहते हैं तथा इसे अंधविश्वास मानते हैं। भगवान कृष्ण ने भी तुलसी को बहुत महत्व दिया , गले में तुलसी की माला धारण करते हैं ,
जब भगवान कृष्ण गोपियों के मध्य से अंतर्ध्यान हो गये तो गोपियां विरह में पागल होकर हर एक में कृष्ण को ढूंढते हुए तुलसी से पूछती है , कच्चित् तुलसी कल्याणि गोविंद चरण प्रिये। उनका तो निवास ही वृंदावन यानि तुलसी का वन है स्वयं कहते हैं – *वृन्दावनं परित्यज्य पदमेकं न* *गच्छति* ।
तुलसी को दांतों से नहीं कुचलना चाहिए , मर्करी होता है, इसीलिए इसे ताम्बे के पात्र में जल में रखते हैं , सीधा निगला जा सके। तुलसी की माला धारण करने के पीछे भी वैज्ञानिक तत्व है कि तुलसी के स्पर्श से पानी अंदर जाता है तो अमृत तुल्य हो जाता है। तुलसी माता अकूत गुणों का भंडार है , भगवान विष्णु के समान पालनकर्ता हैं। आइए बड़ी श्रद्धा से भगवान शालिग्राम तथा तुलसी माता का जयकारा लगाते हुए , विवाह सम्पन्न कराएं। तुलसी माता की कृपा बनी रहे।