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समर्पण +भाव =प्रसन्नता

प्रसन्नता एक ऐसा विषय है जिसका होना या न होना पूर्णतया आप पर निर्भर करता है। लेकिन हम मनुष्य कभी भी इस बात पर विश्वास नहीं करते, हम हमेशा ही अपने अप्रसन्न मन और व्यवहार के लिए दूसरों को दोषी मानते हैं।

आपकी प्रसन्नता आपकी स्वयं की उपज है और उसका जीवन में अनुपस्थित होना भी हम स्वयं ही तय करते हैं।

हमारे पिछले ब्लॉग में हमने भाव की बात की है यहां भी भाव की ही बात करेंगे।

ईश्वर के प्रति समर्पण भाव कैसे हर वक्त प्रसन्न रहने का जरिया बन सकता है ।

हमारे मन में खिन्नता, स्वभाव में चिड़चिड़ापन तभी पैदा होता है जब ह्रदय में किसी के प्रति समर्पण व प्रेम भाव न हो अब आप सोचेंगे कि प्रेम तो हम सब से करते हैं अपने माता पिता से, अपने बच्चों से, अपने परिवार से। सही है ना लेकिन क्या आपको लगता है जिस प्रेम में समर्पण ना हो वह प्रेम पूर्ण नहीं हो पाता । कैसे ?

माता-पिता से आप प्रेम तो करते हैं लेकिन हर बात उनसे शेयर नहीं करते। कुछ ना कुछ ऐसा होता है जो आप किसी से नहीं कह पाते फिर खोज शुरू होती है ऐसे व्यक्ति की जिससे हम सब कुछ कह पाएं। जो हमें समाधान भले ना दे पर हमारी सुन ले बस ।

अरे ,लेकिन आप भूल रहे हैं वह तो आपके सामने ही हैं। अरे ,अरे रुक़ो सामने नहीं आपके भीतर ही है । जी हां, बिल्कुल ,वह ईश्वर है जो सर्वत्र हैं। बस आप उसे पहचान नहीं पाए या यूं कहें कि खुद को उस से जोड़ नहीं पाए ।

कह दीजिए ना उससे सब कुछ जो आप किसी से नहीं कह पाते।

जी हां ईश्वर ही है जो न सिर्फ आपको सुनते भी हैं बल्कि हर समस्या का समाधान भी सुझाते हैं ।और समस्या का डटकर सामना करने का हौसला भी देते हैं। इस बात से ज्यादातर लोग सहमत नहीं होंगे क्योंकि न तो हमने उस समर्पण से अपनी बात ईश्वर से कहीं और जब समर्पण नहीं था तो भाव कैसे आएगा? एक बार अवश्य संपूर्ण समर्पण से ईश्वर से अपने हृदय की बात कहें वह सुनेंगे और अपने भक्तों के भाव को समझकर उसके लिए, उसके भविष्य के लिए जो श्रेयस्कर है वह अवश्य करने की हिम्मत आपको देंगे ।सांसारिक लोगों में आपने जिसे अपने हृदय की बात करने के लिए चुना है हो सकता है किसी समय वह आपके आसपास ना हो लेकिन मेरे भाव प्रेमी कृष्ण अवश्य हर क्षण आपके पास है आपको कहीं जाने की भी आवश्यकता नहीं है आप जहां हैं जिस भी हाल में हैं बस अपनी आंखें बंद कर कान्हा को याद करें और देखें कि जब आपके पास हर क्षण कोई आपको सुनने वाला होगा तो प्रसन्नता आपके आचार और व्यवहार दोनों से टपकेगी ।

जय श्री कृष्ण

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